इस्लामाबाद। कोरोना महामारी से निपटने में अक्षम रहे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने सेना के साथ टकराव के नए रास्ते खोल दिए हैं। सेना के शीर्ष अधिकारी सरकार की इस विफलता पर दुखी हैं। पाकिस्तान के एक पूर्व राजनयिक और पत्रकार वाजिद शमशुल हसन इस नए समीकरण को पाकिस्तान में एक निर्वाचित सरकार के लिए शुभ संकेत के रूप में नहीं देखते। उन्होंने कहा कि देश में भले ही मार्शल ला नहीं हैं, लेकिन देश पर सेना का अप्रत्यक्ष रूप से प्रभुत्व बढ़ा है। उन्होंने कहा यह चिंता तब और बढ़ जाताी है जब देश के स्वामित्व वाली पीआइए, पावर रेगुलेटर और राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान में सेना का प्रभुत्व कायम हो चुका है। इसके अधिकतर सदस्य पूर्व सैन्य अधिकारी हैं। हसन का मानना है कि इमरान खान कोरोना महामारी का मुकाबला करने के लिए अपने सबसे अच्छे विकल्पों को तय करने में विफल रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ के नियमों की अवहेलना से बढ़े संक्रमित
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में लॉकडाउन हटने के बाद कोरोना संक्रमितों के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है। यह स्थिति तब और खतरनाक हो जाती है जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पाकिस्तान को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है। डब्ल्यूएचओ ने अपने नवीनतम निर्देश में पाकिस्तान से कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन को लागू करने के लिए कहा है, लेकिन देश के प्रधानमंत्री ने सभी प्रतिबंधों में ढील देने का विकल्प चुना है।
इमरान खान का प्रभाव सीमित हुआ
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश की अर्थव्यवस्था को दिवालिया होने का हवाला देते हुए लॉकडाउन को नजरअंदाज किया। उन्होंने तर्क दिया कि देश की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए यह आवश्यक था। इससे कोरोना संक्रमण में इजाफा हुआ है। उन्होंने दुकानों और बाजारों को बंद करने के लिए स्मार्ट लॉकडाउन के रूप में गढ़े गए शब्द का उपयोग किया। हसन का मानना है कि देश की गिरती अर्थव्यवस्था और गंभीर कानून व्यवस्था की स्थिति के कारण इमरान खान का प्रभाव सीमित हुआ है।