रायपुर : प्रदेश में अनायास ही राजनीतिक अस्थिरता जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। पिछले कुछ दिनों से रायपुर से दिल्ली तक चल रही गहमागहमी के बीच अभी भी कुछ तय नहीं है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समर्थन में 50 से अधिक विधायकों और 10 मेयरों का दिल्ली पहुंचना इस बात का प्रमाण तो है ही कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व अलग-अलग राज्यों में उत्पन्न् हो रही चुनौतियों से लगातार जूझ रहा है।
छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव और कुछ विधायकों को छोड़कर पार्टी के तमाम मंत्री और विधायक मुख्यमंत्री के समर्थन में खड़े दिखे। वर्तमान घटनाक्रम में रायपुर समेत पूरे प्रदेश में एकाएक सन्नाटे की स्थिति बन गई। सब कुछ ठहर-सा गया है। यह सब समय हो रहा है, जब कृषि प्रधान प्रदेश में खरीफ फसल कम बारिश की वजह से प्रभावित है और खाद की उपलब्धता बड़ी चुनौती बनी हुई है। हालत यह है कि 18 जिलों की 44 तहसीलों में सूखे की स्थिति बन गई है और जल्द से जल्द प्रशासनिक सर्वे जरूरी है।
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प्रदेश की 90 सदस्यीय विधानसभा में 70 विधायकों के साथ कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त है। जनता की तरफ से स्थायी सरकार के लिए किया गया मतदान अगर पार्टी नेतृत्व की रणनीति और गुटबाजी के कारण अस्थिर परिस्थितियों का सृजन कर रहा है तो इस पर कांग्रेस के अंदर ही गंभीरता से मंथन किए जाने की जरूरत है। राज्य की बड़ी आबादी के दिमाग में एक ही बात है कि आपस में ही खींचतान और जिद्दोजहद किसलिए?
प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भूपेश बघेल ने 2018 में पार्टी को भारी बहुमत से जीत दिलाई और उन्हें इसका पुरस्कार भी मिला। संगठनात्मक क्षमता दिखाने के बाद प्रशासनिक तौर पर भी भूपेश बघेल सफल नेतृत्व देने में कामयाब रहे हैं। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व की अनिर्णय की नीति ने गुटबाजी को बढ़ावा दिया, जिसके कारण एकाएक अनिश्चितता की यह स्थिति बनी।
विधायकों के दिल्ली पहुंचने के बारे में कांग्रेस के राज्य प्रभारी पीएल पुनिया का वह बयान भ्रम ही पैदा करता रहा कि किसी भी विधायकों के साथ दिल्ली में कोई बैठक नहीं होनी है। तमाम विधायकों के दिल्ली पहुंचते ही सबसे पहले पुनिया ने ही बैठक की। अब राहुल गांधी के अगले सप्ताह छत्तीसगढ़ आने की घोषणा कर मुख्यमंत्री बघेल ने साफ संकेत दे दिए हैं कि पार्टी नेतृत्व के समक्ष वह अपनी मजबूती साबित करने में सफल रहे हैं।
जनप्रतिनिधि उनके साथ हैं। कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति चाहे जो भी हो, राज्य हित में तो यही बेहतर होगा कि इस राजनीतिक घटनाक्रम का जल्द से जल्द पटापेक्ष हो। जनता ने 15 साल बाद जिस उम्मीद से कांग्रेस को सत्ता सौंपी है उसे पूरा करने के लिए स्थायित्व जरूरी है।