मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में बस्तर में भी भेंट-मुलाकात कार्यक्रम अंतिम चरण में पहुंच गया है। उत्तरी छत्तीसगढ़ से हुई शुरुआत की जैसी आक्रामक कार्रवाइयां तो सामने नहीं आ रही हैं लेकिन समय सीमा में काम पूरा करने के आदेश जरूर जारी हो रहे हैं। इन सबके बीच बस्तर क्षेत्र के प्रभारी मंत्री कवासी लखमा, प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम और सांसद दीपक बैज जो राजनीतिक संदेश दे रहे हैं, वह जरूर मायने रखता है। डेढ़ साल बाकी है और लक्ष्य तय है।
मुख्यमंत्री की अगुआई में राजनीति के तीनों खिलाड़ी जनता को अपने-अपने तरीके से कुछ इस तरह बांध रहे हैं कि तालियां राजनीतिक सभा के समर्थन में तब्दील हो जाएं। समय की सीमा पीछे छूट जा रही है। अधिक से अधिक जनता को बोलने का मौका देने तथा सभी के सुझाव और शिकायत पत्र लेने के बाद ही काफिला आगे बढ़ रहा है।
ओडिशा की सीमा के नजदीक माकड़ी ब्लाक मुख्यालय में सभा के दौरान शुद्ध देसी अंदाज में कवासी लखमा जब बताते हैं कि गांव में आपने पहले कभी डीजीपी नहीं देखे होंगे
। देख लो यह लंबी-लंबी मूंछों वाले प्रदेश के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी हैं। दाढ़ी वाले अपने डीएम पुष्पेंद्र कुमार मीणा और घुमावदार मूंछों वाले रायपुर से आए सेक्रेट्री डा. एस भारतीदासन जी को भी देख लो। प्रभारी सचिव डा. प्रियंका शुक्ला भी आई हैं। जवाब में जनता की तरफ से उल्लास भरी आवाज के साथ तालियों की गड़गड़ाहट आती है। लखमा बताते हैं कि मुख्यमंत्री जी सभी को साथ लाए हैं ताकि क्षेत्र का कोई काम नहीं रुके।
सांसद दीपक बैज बातों को और आगे बढ़ाते हैं। मुख्यमंत्री जी एक तरफ गांवों को लोगों के बैंक खाते में पैसे डाल रहे हैं और केंद्र सरकार दूसरी तरफ से वसूल रही है। याद करो आठ साल पहले केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तो रसोई गैस का सिलेंडर 450 रुपये में मिलता था। और अब? कीमत 1050 रुपये से ऊपर जा चुकी है। इसी तरह पेट्रोल और डीजल की कीमतों ने हर सामान की महंगाई बढ़ा दी है।
देश में छत्तीसगढ़ इकलौता राज्य है जहां किसानों का धान 2540 रुपये क्विंटल की दर से खरीदा जा रहा है। वनोपजों के लिए न्यूनतम खरीद मूल्य तय होने से संग्रहण करने वालों को सीधा लाभ मिल रहा है। गोबर भी कमाई का जरिया बन गया है। कुछ इसी अंदाज में राजागांव में भी भेंट-मुलाकात हुई। क्षेत्र के विधायक और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मोहन मरकाम ने एक दर्जन भवनहीन स्कूलों के लिए बजट के साथ-साथ सड़क, बिजली, पानी, नाला, मिनी खेल स्टेडियम के लिए बजट की मांग उठाई और मुख्यमंत्री की स्वीकृति भी मिल गई।
भेंट-मुलाकात का जो सिलसिला सुबह 10 बजे जगदलपुर में अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक से शुरू होकर रात सवा नौ बजे तक पूर हो जाना था वह साढ़े 11 बजे के बाद भी चलता रहा। स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों का दौरा और बच्चों एवं अभिभावकों के साथ मुख्यमंत्री का संवाद प्रभावी संदेश छोड़ने में जरूर सफल रहा। काफिले में साथ चल रहे अधिकारी और कर्मचारी भले परेशान हुए हों बच्चों के सवालों का विस्तार से जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने समय की चिंता नहीं की। यही कारण रहा कि दोपहर दो बजे प्रस्तावित भोजन का कार्यक्रम शाम पांच बजे शुरू हो सका।
भेंट मुलाकात में लेट-लतीफी से लेकर कमिशनखोरी तक के मामले सामने आ रहे हैं। माकड़ी ब्लाक के एक गांव में जब बिजली कनेक्शन देने के नाम पर लोगों से लाखों रुपये वसूले जाने और चार साल बाद भी बिजली कनेक्शन नहीं मिल पाने का मामला सामने आया तो मुख्यमंत्री ने सख्त रूख अपनाते हुए स्पष्ट संदेश दिया, किसानों का पैसा खाने वाला जेल जाना चाहिए। कभी नक्सल प्रभावित रहे गांवों में बैंक की शाखा खोलने की मांगों ने सरकार का उत्साह बढ़ाया है।
गोबर बेचकर अच्छी कमाई करने वालों से यह पूछने में मुख्यमंत्री नहीं चूक रहे कि पैसे का किया क्या? किसी ने बताया बेटी की शादी में खर्च किया तो किसी ने मोटरसाइकिल खरीदने और मकान बनाने में। राशन कार्ड और नामांतरण की समस्याएं जानने में मुख्यमंत्री की विशेष रूचि है। अधिकांश मामलों में जवाब प्रशासनिक कामकाज में तेजी आने की जानकारी दे रहा था। हाल के दिनों में गांवों में कैंप लगाकर शिकायतें एकत्र की गई हैं और उनके समाधान की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जाहिर है भेंट-मुलाकात के बहाने ही कोरोना जनित प्रशासनिक शिथिलता टूटी है और मुख्यमंत्री की तरफ से राजनितक संदेश देने का काम लखमा-मरकाम और बैज तो पूरा कर ही रहे हैं।