पटना : उपचुनाव (By Election) में झटका झेलने के बाद बिहार का सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) भले ही संभलकर कदम आगे बढ़ा रहा हो, लेकिन बयानबाजी और शिगूफों का दौर फिर भी जारी है। पिछले दिनों दिल्ली में जनता दल यूनाइटेड (JDU) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान अचानक से यह बात हवा में तारी हुई कि जेडीयू को केंद्र की केंद्र की एनडीए सरकार (NDA Government) में उचित हिस्सेदारी चाहिए। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता की ओर से कथित रूप से दिए गए इस बयान पर किसी की कोई प्रतिक्रिया आती, इससे पहले खुद जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने ही इसकी हवा निकाल दी। उन्होंने पार्टी की ऐसी किसी चाहत से न सिर्फ इनकार किया, बल्कि इसे फिजूल की बात तक ठहरा दिया।
बात आई-गई हो गई और एक दिन के लिए अचानक से पैदा हुई सरगर्मियां भी शांत पड़ गईं। बावजूद इसके, इस एकदिनी घटनाक्रम में यह सवाल जरूर उठा कि आखिर ऐसा भ्रम बना ही क्यों, जिसे दूर करने के लिए खुद नेतृत्व को सामने आना पड़ा।
पहले भी भ्रम दूर करने के सामने आ चुका नेतृत्व
ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है कि सत्तारूढ़ जेडीयू और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की ओर से इस तरह की बयानबाजी को लेकर पैदा हुए भ्रम या ऊहापोह को दूर करने के लिए खुद नेतृत्व को मोर्चा संभालना पड़ा हो। इससे पहले अभी नवरात्र के दौरान पटना में आई बाढ़ को लेकर भी दोनों ओर के बयानवीरों ने अपनी ज़ुबान जमकर चलाई। ऐसा लगा कि बाढ़ के पानी में दोनों पार्टियां ही एक दूसरे डुबोने में लगी हों। ऐसे में तब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) को सामने आकर भ्रम का निवारण करना पड़ा था। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रदेश विधानसभा का अगला चुनाव (Bihar Assembly Election) नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। तब भी यह सवाल उठा था कि आखिर यह बताने के लिए खुद अमित शाह को क्यों आगे आना पड़ा?
छोटे स्तर पर हो रही समन्वय की डोर पर चोट
जाहिर है कि छोटे स्तर पर ही सही, कहीं न कहीं समन्वय की डोर पर चोट हो रही है। पिछले कुछ समय से बिहार के सियासी गलियारे में इस तरह के भ्रम और ऊहापोह के लिए विपक्ष का महागठबंधन जाना जाता है। खासकर लोकसभा चुनाव के बाद से महागठबंधन के घटक दलों का आपसी विवाद कुछ ज्यादा ही मुखर होकर सामने आया। हालिया उपचुनाव में तो इसके घटक दल कुछ सीटों पर आपस में ही ताल ठोंकते नजर आए।
चुनाव नतीजे के बाद विपक्षी खेमे में शांति
हालांकि, चुनाव नतीजे के बाद विपक्षी खेमे में आश्चर्यजनक रूप से शांति बनी हुई है। बयानबाजियां बंद हैं और नेतृत्व को लेकर सवाल भी नहीं उठ रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता तेजस्वी (Tejashwi Yadav) चुप हैं तो उनके बड़े भाई तेज प्रताप भी वृंदावन की गलियों की परिक्रमा में व्यस्त हैं।
आए दिन हिचकोले खाते दिखाई देते जेडीयू-बीजेपी के रिश्ते
दूसरी ओर, एकजुट एनडीए, खासकर जेडीयू-बीजेपी के रिश्ते इधर आए दिन हिचकोले खाते दिखाई देते हैं। पिछले दिनों बयानबाजियों के चलते माहौल में सरगर्मियां जरूर आईं, लेकिन उपचुनाव के प्रचार में दोनों ओर के नेतृत्च ने एकजुट होकर चीजों को पटरी पर लाने की कोशिश की। हालांकि, नतीजे उम्मीदों के मुताबिक नहीं आ पाए। तब दबी ज़ुबान से ही सही, दोनों ने परस्पर समन्वय का मोल-महत्व समझा जरूर।
सत्तारूढ़ खेमे के कील-कांटे दुरुस्त करने का समय
अब सवाल है कि जब सिर पर विधानसभा का चुनाव है तो ऐसे बयान या मुद्दे सिर ही क्यों उठाते हैं, जिन पर सफाई देने के लिए नेतृत्व को आगे आना पड़ता है। आखिर अमित शाह या नीतीश कुमार को ही क्यों कमान थामनी पड़ती है? चुनाव में अब साल भर का समय है। यह समय सत्तारूढ़ खेमे के अपने कील-कांटे दुरुस्त करने में लगाने का होता है। यदि यह समय परस्पर संशय व ऊहापोह दूर करने और सामंजस्य को दोबारा पटरी पर लाने में जाया हो तो फिर कई बार नतीजे मायूस भी करते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे इसका टटका उदाहरण हैं।
पटना के गंगा तट पर आज अस्ताचलगामी और कल प्रात: उगते सूर्य को अर्घ्य देकर नमन करते समय दोनों ओर से नेतागण इस बात को जितने श्रद्धाभाव से मन में उतार लेंगे, एनडीए की सेहत उतनी ही बुलंद रहेगी।