भोपाल . महिला स्व सहायता समूहों के फेडरेशन के नए पोषण आहार प्लांटों का काम पहले ही एक साल देरी से चल रहा है, अब इस प्रोजेक्ट को लेकर नई कवायद सामने आई है। इन प्लांटों के संचालन का काम पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से लेकर एक बार फिर एमपी एग्रो को दिया जा रहा है। प्रस्ताव तैयार हो गया है, जिसे अभिमत के लिए वित्त, महिला एवं बाल विकास और खाद्य प्रसंस्करण विभाग को भेजा गया है। ग्रामीण विकास विभाग के अधीन आजीविका मिशन ये प्लांट बनवा रहा है। विभाग का तर्क है कि आजीविका मिशन में तकनीकी स्टाॅफ सिर्फ एक साल के लिए है।
पूर्व में जब कंपनियों से पोषण आहार सप्लाई का काम लेकर स्व सहायता समूहों को देने की बात हुई थी, तब महिला स्व सहायता समूहों को एक साल में ट्रेंड भी किया जाना था। एेसा होने के बाद वे प्लांटों का संचालन कर लेतीं, लेकिन एेसी स्थितियां बनना मुमकिन नहीं दिख रही है। चूंकि एमपी एग्रो को पूर्व का अनुभव है, इसलिए इसके प्रबंधन का काम उसे ही दे दिया जाए। इस तर्क के बाद एमपी एग्रो को ही पूरा काम देने की कैबिनेट प्रेसी तेजी से चल पड़ी। जल्द ही इसे कैबिनेट में लाया जाएगा। यहां बता दें कि आंगनबाड़ी केंद्रों में 6 माह से तीन वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं, धात्री माताओं और किशोरी बालिकाओं (11 से 14 वर्ष तक शाला त्यागी) को इसकी सप्लाई होती है।
नोटिस के बाद भी जारी अनुबंध
बताया जा रहा है कि जिन तीन कंपनियों एमपी एग्रो न्यूट्री फूड प्रालि, एमपी एग्रोटॉनिक्स लिमिटेड और एमपी एग्रो फूड इंडस्ट्रीज के साथ एमपी एग्रो का अनुबंध है, वह अभी बदस्तूर जारी है। खाद्य प्रसंस्करण के पूर्व प्रमुख सचिव अनिरुद्ध मुखर्जी ने अनुबंध (ज्वाइंट वेंचर) खत्म करने के लिए जून 2019 में नोटिस जारी किया था, साथ ही कहा था कि राशि का लेन-देन करके अनुबंध समाप्त कर दिया जाए, लेकिन वह बरकरार है।
सालाना 8 हजार टन पोषाहार सप्लाई कर रही कंपनियां
उपरोक्त तीन कंपनियों के साथ अप्रैल 2018 में जुड़ीं चार कंपनियां जयपुर की फ्लोरा फूड, कोटा की कोटा दाल मिल, दिल्ली की सुरुचि फूड और नोयडा की बिहारी एग्रो फूड भी मप्र में पोषाहार की सप्लाई कर रही हैं। ताजा रिपोर्ट के अनुसार महिला स्व सहायता समूहों के फेडरेशन (नए प्लांट) सिर्फ चार हजार टन ही पोषाहार उपलब्ध करा पा रही हैं। सालाना कुल जरूरत के बचे हुए 8000 टन की सप्लाई अभी भी कंपनियों के हाथ में है। सितंबर 2019 में कैबिनेट बैठक ने दिसंबर 2019 तक इन्हीं सात कंपनियों से पोषाहार सप्लाई लेने की मंजूरी दी है। इस उम्मीद में कि स्व सहायता समूहों के सभी प्लांट चलने लगेंगे।
स्व सहायता समूहों का काम अभी सिर्फ 15 जिलों में
आजीविका मिशन देवास, धार और होशंगाबाद में ही अभी तक प्लांट चालू कर पाया है। इनसे 15 जिलों में पोषण आहार की सप्लाई हो रही है। सागर और मंडला के प्लांट के चालू होने की बात की जा रही है। रीवा और शिवपुरी में उत्पादन नवंबर के बाद ही हो पाएगा। साफ है कि नई व्यवस्था के तहत स्व सहायता समूह के फेडरेशन को पूरी क्षमता से पोषण आहार उत्पादन करने में अभी और समय लगेगा।
कोट्स
‘विचार चल रहा है, लेकिन अभी कोई निर्णय की स्थिति नहीं बनी है। महिला स्व सहायता समूहों की भागीदारी भी बनी रहेगी।’
– कमलेश्वर पटेल, मंत्री, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग
महिला बाल विकास का मत नियमों के अधीन हो फैसला
प्रस्ताव पर महिला एवं बाल विकास विभाग का अभिमत है कि फैसला सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन के अधीन लिया जाए। ग्रामीण विभाग तर्क दे रहा है कि एमपी एग्रो प्रबंधन जरूर देखेगा, लेकिन मुनाफे का कुछ हिस्सा स्व सहायता समूहों को भी जाएगा। यह भी कहा जा रहा है कि नए प्लांटों की देख रेख नहीं हो पा रही। ट्रेंड लोग नहीं हैं। ज्यादातर की जवाबदारी जनपद सीईओ के पास है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश हैं : स्व समूहों से ही कराएं काम हकीकत : एक साल बाद भी काम निजी कंपनियां कर रहीं
इस कवायद के बाद सवाल खड़े हो गए हैं कि पूर्व में एमपी एग्रो से ही निजी क्षेत्र की तीन कंपनियों का अनुबंध था। वर्ष 2017 में विवाद हुआ तो सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन के अनुसार स्व सहायता समूहों से पोषण आहार का काम कराए जाने का फैसला किया गया। मार्च 2018 में कैबिनेट ने मंजूरी दी, जिसमें कहा गया कि अक्टूबर 2018 तक यह काम स्व सहायता समूहों के पास होगा, लेकिन एेसा नहीं हुआ। भोपाल छोड़कर सात प्लांट बनाए जाने थे, लेकिन एक साल बाद भी यह पूरी तरह चालू नहीं हो सके। लिहाजा अभी भी हर माह करीब 60 करोड़ रुपए मूल्य के पोषाहार की सप्लाई का काम निजी क्षेत्र की कंपनियों के पास है।