भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद यानी इसरो ने घोषणा की है कि वो चांद पर अपना अभियान चंद्रयान- 3 14 जुलाई की दोपहर 2.35 बजे भेजेगा.
इसरो के शुरुआती दो अभियानों के बाद यह तीसरा प्रयास है जिसे चंद्रयान-2 के फ़ॉलोअप मिशन के रूप में देखा जा रहा है.
इस मिशन में चांद की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग की कोशिश की जाएगी, यह मुक़ाम केवल तीन देशों रूस, अमेरिका और चीन को हासिल है.
इसके साथ ही इसरो ने अपने पहले सूर्य अभियान आदित्य-एल1 का एलान भी किया है जिसे इसी साल अगस्त के महीने में प्रक्षेपित किया जाएगा. लेकिन फ़िलहाल सबसे अधिक चर्चा चंद्रयान-3 की हो रही है.
चंद्रयान- 3 कब लॉन्च किया जाएगा?
इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने बीते बुधवार (28 जून 2023) को बताया कि चंद्रयान- 3 प्रक्षेपण के लिए तैयार है.
एस. सोमनाथ ने कहा, “चंद्रयान- 3 अंतरिक्ष यान को पूरी तरह आपस में जोड़ दिया गया है और हमने इसका परीक्षण पूरा कर लिया है.”
चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाएगा. इसका प्रक्षेपण एलएमवी 3 रॉकेट के ज़रिए किया जाएगा, जिसे पहले जीएसएलवी मार्क 3 के नाम से जाना जाता था.
चंद्रयान-3 का कुल बजट क़रीब 615 करोड़ रुपये बताया गया है. इसरो ने इस मिशन का तीन अहम लक्ष्य बताया है:
चंद्रयान- 3 के लैंडर की चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ़्ट लैंडिंग
इसके रोवर को चांद की सतह पर चलाकर दिखाना, और
वैज्ञानिक परीक्षण करना.
चंद्रयान- 2 की तरह चंद्रयान- 3 के पास भी एक लैंडर (वो अंतरिक्ष यान जो चांद की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग करेगा) और एक रोवर होगा (वो अंतरिक्ष यान जो चांद की सतह पर घूमेगा).
जैसे ही यह चांद की सतह पर पहुंचेगा, लैंडर और रोवर अगले एक लूनर डे या चंद्र दिवस यानी धरती के 14 दिनों के समान समय के लिए सक्रिय हो जाएंगे.
इसरो के चंद्र अभियान का लक्ष्य चांद के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में सॉफ़्ट लैंडिंग करने का है.
इसरो ने सितंबर 2019 में चंद्रयान- 2 को चांद पर उतारने का प्रयास किया था लेकिन तब उसका विक्रम लैंडर क्षतिग्रस्त हो गया था.
तब इसरो प्रमुख ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई से कहा था, “ऑर्बिटर से मिली तस्वीर से लगता है कि विक्रम लैंडर की चांद पर हार्ड लैंडिंग हुई है. चांद का चक्कर लगा रहे आर्बिटर ने विक्रम लैंडर की थर्मल इमेज ली है.”
किसी अंतरिक्ष यान के चांद पर दो तरह से लैंडिंग हो सकती है. एक है सॉफ़्ट लैंडिंग जिसमें अंतरिक्ष यान की गति कम होती जाती है और वो धीरे-धीरे चांद की सतह पर सफलतापूर्वक उतर जाता है. वहीं दूसरी लैंडिंग हार्ड लैंडिंग होती है इसमें अंतरिक्ष यान चांद की सतह से टकरा कर क्रैश हो जाता है.
चंद्रयान- 2 से मिली सीख के आधार पर इसरो ने अपने आगामी अभियान की डिजाइन और बनावट में बदलाव किया है.
न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक़ संभावना ये है कि इसरो एक बार फिर अपने लैंडर का नाम विक्रम और रोवर का नाम प्रज्ञान रखेगा.
यह अभियान चांद की सतह पर रासायनिक तत्वों और मिट्टी, पानी के कणों जैसे प्राकृतिक संसाधनों को देखेगा. यह अभियान चांद की बनावट को लेकर हमारी जानकारी में महत्वपूर्ण इज़ाफ़ा करेगा.
वैज्ञानिक परीक्षण के लिए यह अंतरिक्ष यान अपने साथ कई उपकरणों को ले जा रहा है, जिसमें सिस्मोमीटर भी शामिल है ताकि चांद के भूकंप को मापा जा सके. वैज्ञानिक इस तरह के परीक्षण से चांद की सतह के तापमान और वहां के वातावरण के अन्य तत्वों को जान सकेंगे.
चंद्रयान-3 पर स्पेक्ट्रो-पोलारिमेट्री ऑफ़ विजेटेबल प्लैनेट अर्थ (एसएचएपीई) भी लगा होगा जिससे हमारे वैज्ञानिकों को चंद्रमा की कक्षा के छोटे ग्रहों और हमारे सौरमंडल के बाहर स्थित ऐसे अन्य ग्रहों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए महत्वपूर्ण डेटा हासिल हो सकेगा जहां जीवन संभव है.
चंद्रयान- 3 इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
चंद्रयान- 3 का अभियान न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है.
लैंडर चांद की उस सतह पर जाएगा जिसके बारे में अब तक कोई जानकारी मौजूद नहीं है. लिहाज़ा इस अभियान से हमारी धरती के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चांद के विषय में जानकारी और बढ़ेगी.
इससे न केवल चांद के बारे में बल्कि अन्य ग्रहों के विषय में भी भविष्य के अंतरिक्ष अनुसंधान की क्षमता विकसित होगी.
भारत के पहले के चंद्र अभियानों में क्या हुआ था?
चंद्रयान-3 चांद को लेकर इसरो का तीसरा अंतरिक्ष अभियान है इसे भारतीय चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के नाम से भी जाना जाता है.
भारत ने अपना पहला चंद्र अभियान चंद्रयान-1 2008 में प्रक्षेपित किया था. उस पर एक ऑर्बिटर और इम्पैक्ट प्रोब भी था लेकिन यह शेकलटन क्रेटर के पास क्रैश हो गया था. बाद में इस जगह को जवाहर पॉइंट का नाम दिया गया. इसके साथ ही भारत चांद पर अपना झंडा फहराने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. उससे पहले अमेरिका, रूस और जापान ये कामयाबी हासिल कर चुके थे.
तब अपने प्रक्षेपण के 312 दिन बाद उसका संपर्क धरती से टूट गया. लेकिन ये जानकारी दी गई कि संपर्क टूटने से पहले इस अभियान का 95 फ़ीसद लक्ष्य हासिल कर लिया गया है.
हालांकि तब मिली मिश्रित सफलता भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक बहुत बड़ा क़दम था. चंद्रयान- 2 ने भी चांद पर पानी के कण को ढूंढने में एक अहम किरदार अदा किया था.
10 साल के बाद 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान- 2 विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर के साथ प्रक्षेपित किया गया.
लेकिन 6 सितंबर 2019 को जब इसने चांद की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग की कोशिश की तो विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया. तीन महीने बाद नासा के उपग्रह ने इसके मलबे को ढूंढा और इसकी तस्वीर जारी की.
विक्रम लैंडर भले ही असफल रहा लेकिन ऑर्बिटर चंद्रमा और इसके वातावरण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठा करता रहा. और अब भारत अपना चंद्रयान-3 अभियान प्रक्षेपित करने जा रहा है.