रायपुर। केंद्र की पूर्व यूपीए सरकार के वन अधिकार कानून को छत्तीगसढ़ की मौजूदा सरकार ने बदल दिया है। सरकार ने अब वन विभाग को सामुदायिक वनाधिकार के लिए नोडल विभाग बनाने का आदेश जारी किया है। इसका विरोध शुरू हो गया है। विरोध करने वालों का आरोप है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान वनाधिकार कानून के सुचारू क्रियान्वयन का वादा किया था लेकिन नए आदेश में सरकार कानून के मूलभूत विचारों और प्रावधानों के खिलाफ जाती नजर आ रही है।
आदिवासी विकास विभाग ही नोडल एजेंसी
सामाजिक संगठनों ने आशंका जताई कि सरकार वन विभाग संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के जरिए ग्राम सभा के अधिकारों का हनन करके अपने एजेंडे को आगे बढ़ाएगी। इससे समाज में द्वंद्व खड़ा हो सकता है। केंद्र की पूर्व यूपीए सरकार ने वन कानून के लिए आदिम जाति विभाग को नोडल एजेंसी बनाया था। केंद्र के आदिवासी कार्य मंत्रालय ने 27 सितंबर 2007 और 11 जनवरी 2008 को राज्यों को लिखे पत्र में जोर दिया कि आदिवासी विकास विभाग ही नोडल एजेंसी होगा।
बदलाव के बाद विरोध तेज
सरकार ने सामुदायिक वन अधिकारों की मान्यता, विशेषकर ग्राम सभा की ओर से वन का प्रबंधन करने का अधिकार सुनिश्चित करने की प्रतिद्धता दिखाई है लेकिन ताजा बदलाव के बाद विरोध तेज हो गया है। संगठनों ने मांग की है कि व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों की पूर्ण मान्यता होने तक वन भूमि से विस्थापन या धारित भूमि का अधिग्रहण या पुनर्वास पैकेज प्रस्ताव नहीं दिया जाना चाहिए।
सामुदायिक वन अधिकार के लाखों दावे लंबित
आलोक छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने बताया कि वर्ष 2012-13 से प्रदेश में ग्राम सभाओं की ओर से सामुदायिक वन अधिकार के दावे भरे गए थे जो अब तक लंबित हैं। हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन सुगम बनाने समुदाय को दिए वन अधिकारों का खुला उल्लंघन जारी है। अब भी वहां समुदाय वन अधिकारों की बहाली के लिए संघर्षरत है। वर्ष 2012 से लघु वनोपज और निस्तार के अधिकार दिए गए, लेकिन जंगल प्रबंधन के अधिकार को स्वीकार नहीं किया गया है। अधिकतर सामुदायिक अधिकार सयुक्त वन प्रबंधन समितियों के नाम पर है। इन्हें सुधाकर ग्रामसभाओं के नाम दिया जाना चाहिए था।
इस तरह से किया जाए प्रबंधन
भारत जन आंदोलन के विजय भाई, छत्तीगसढ़ वनाधिकार मंच के विजेंद्र अजनबी और दलित आदिवासी मंच के राजिम केतवास ने कहा कि आदिवासी विकास विभाग के जिले में पदस्थ अमले को बेहतर प्रशिक्षण देकर जवाबदेह बनाना चाहिए। कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित जिला स्तरीय समिति को अधिकार पत्र प्रदान करने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। जिला समिति की भूमिका दावे लटकाने या खारिज करने की नहीं, बल्कि ग्रामसभाओं के दावों को सुधारने और साक्ष्य जुटाने में मदद करने की होनी चाहिए।