नई दिल्ली। दिवालिया होने के कगार पर पहुंच चुकी एनबीएफसी दीवान हाउसिंग फाइनेंस कार्पोरेशन (डीएचएफएल) के लिए आरबीआइ ने तीन सदस्यीय सलाहकार बोर्ड का गठन किया है। दो दिन पहले ही इस कंपनी के निदेशक बोर्ड को निरस्त कर दिया गया था। अब आइडीएफसी बैंक के नान एक्जीक्यूटिव चेयरमैन राजीव लाल, आइसीआइसीआइ प्रू लाइफ इंश्योरेंस के एमडी व सीईओ एन एस कनन और एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड ऑफ इंडिया के चीफ एक्जीक्यूटिव एन एस वेंकटेश को मिला कर बनाई गई यह समिति ना सिर्फ कंपनी को दिवालिया प्रक्रिया में ले जाने बल्कि तमाम वैधानिक प्रक्रियाओं को पूरा करने में अहम भूमिका निभाएगी। साथ ही यह समिति आरबीआइ की तरफ से डीएचएफएल में नियुक्त प्रशासक (इंडियन ओवरसीज बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक आर सुब्रमणियाकुमार) को बकाये कर्ज वसूलने से लेकर तमाम दायित्वों के भुगतान को लेकर भी सलाह देगी।
कंपनी पर तकरीबन 84 हजार करोड़ रुपये का बकाया है जिसमें 38 हजार करोड़ रुपये बैंकों का है।उधर, वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि डीएचएफएल को लेकर आरबीआइ के साथ लगातार संपर्क बना कर रखा गया है। मंत्रालय की तरफ से आरबीआइ को कहा गया है कि पूरे प्रकरण को निर्धारित समय अवधि के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं होगा तो यह सरकारी क्षेत्र के कुछ बड़े बैंकों के लिए बड़ा धक्का साबित होगा क्योकि उन्होंने हजारों करोड़ रुपये कंपनी की विभिन्न प्रपत्रों में इन बैंकों ने निवेश किया है और अगर इसकी वसूली का रास्ता नहीं निकलता है तो इनके फंसे कर्जे (एनपीए) में भारी वृद्धि की संभावना है। सबसे ज्यादा पैसा एसबीआइ और बैंक ऑफ बड़ौदा का फंसा है।
आरबीआइ को कहा गया है नए दिवालिया कानून के तहत डीएचएफएल का मामला कम से कम समय में निपटाने की व्यवस्था होनी चाहिए। सनद रहे कि इस हफ्ते के दौरान ही आइबीसी के तहत डीएचएफएल की तरफ से दिवालिया आवेदन दायर किया जाएगा। यह देश का पहला एनबीएफसी होगा जिसे दिवालिया कानून के तहत दिवालिया घोषित किया जाएगा।सरकार व आरबीआइ की तरफ से बेहद सक्रियता दिखाने के बावजूद इस कंपनी में पैसा जमा कराने वाले ग्राहकों की राशि वापस होगी या नहीं इसको लेकर संदेह है।
डीएचएफएल की तरफ से पेश वैधानिक रिपोर्ट के मुताबिक इसकी कुल देनदारियां 83,900 करोड़ रुपये की हैं। इसमें सबसे ज्यादा 37 फीसद डिबेंचर निवेशकों का है। जबकि 31 फीसद सावधि कर्ज है जिसे विभिन्न बैंकों से लिया गया है। जबकि 7 फीसद सावधि जमा स्कीमों के तहत विभिन्न ग्राहकों का है। अब दिवालिया कानून (इंसोल्वेंसी व बैंक्रप्सी कोड -आईबीसी) के मुताबिक दिवालिया होने वाली कंपनी की परिसंपत्तियों पर पहला अधिकार सुरक्षित लेनदारों और कर्मचारियों का होता है। सावधि जमा में पैसा लगाने वाले ग्राहकों को अनसिक्यूर्ड लेनदारों की श्रेणी में रखा जाता है। इन्हें सिक्यूएर्ड (सुरक्षित) ग्राहकों को भुगतान के बाद भुगतान होगा। अब देखना होगा कि कंपनी की संपत्तियों की बिक्री से इन सभी के लिए राशि निकल पाती है या नहीं।