अधर में लटकी रेलवे की सबसे महंगे स्पेक्ट्रम की मांग, मोबाइल सेवाओं के आधुनिकीकरण पर रहेगा जोर

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नई दिल्ली : 5-जी सेवाओं के लिए अत्यावश्यक और सबसे महंगे स्पेक्ट्रम के मुफ्त आवंटन की रेलवे की मांग से दूरसंचार विभाग पशोपेश में है। विभाग का कहना है कि यदि रेलवे की मांग मानी गई तो इससे देश में मोबाइल सेवाओं का आधुनिकीकरण प्रभावित होगा। जबकि रेलवे का तर्क है कि उक्त स्पेक्ट्रम के बगैर रेलवे के कायाकल्प का प्रधानमंत्री का सपना पूरा नहीं होगा।

रेलवे ने दूरसंचार विभाग से 700 मेगाहट्र्ज बैंड के 15 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम की मांग की है। इस मांग के पीछे रेलवे का तर्क है कि उसके 66 हजार रूट किलोमीटर के ट्रैक और 8,000 से ज्यादा स्टेशनों के विशाल नेटवर्क पर रोजाना 21 हजार यात्री एवं माल गाड़ियां चलती हैं। इनमें हर रोज करीब 2.2 करोड़ लोग सफर करते हैं। कुल मिलाकर भारतीय रेल हर साल आठ अरब यात्रियों और एक अरब टन माल को गंतव्य तक पहुंचाती है।

फिलहाल रेलवे को अपने जीएसएम-आर आधारित नेटवर्क के संचालन के लिए 900 मेगाहट्र्ज बैंड का 1.6 मेगाहट्र्ज (पेयर्ड) स्पेक्ट्रम मिला हुआ है। परंतु इससे अब आगे काम नहीं चलने वाला है। अभी टेन से ट्रेन तथा ट्रेन से ट्रैकसाइड के बीच रेडियो कम्यूनिकेशन के लिए रेलवे 2-जी स्तर के जीएसएम-आर मोबाइल सिस्टम का इस्तेमाल करती है। अभी तक 2,500 रूट किलोमीटर पर इस सिस्टम को लगाया जा चुका है। बाकी नेटवर्क पर 5-वाट और 25-वाट के वीएचएफ सेट्स का प्रयोग किया जाता है। ये दोनो सिस्टम मुख्यतया वॉयस-आधारित हैं। इनमें डाटा हैंडलिंग की कोई क्षमता नहीं है।

रेल मंत्रालय के अनुसार नवंबर, 2017 में प्रधानमंत्री के साथ हुए चिंतन शिविर में रेलवे नेटवर्क के साथ अल्ट्रा-हाईस्पीड वायरलेस कॉरिडोर्स के विकास का प्रस्ताव किया गया था। उस समय से ही रेलवे ने अपने आपरेशंस, यात्री सुरक्षा, संरक्षा, संतुष्टि तथा वित्तीय हालत में सुधार की दिशा में अनेक कदम उठाए हैं। शिविर का एक बड़ा निर्णय रेलवे की सिग्नलिंग एवं ट्रेन कंट्रोल प्रणाली को यूरोपीय ट्रेन कंट्रोल सिस्टम की तर्ज पर आधुनिक एवं मोबाइल कम्यूनिकेशन आधारित बनाने का था। इसके लिए 700 मेगाहट्र्ज बैंड के 15 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम की आवश्यकता है। रेलवे का कहना है कि चूंकि इस स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल लाभ के बजाय जनता की भलाई के लिए किया जाना है, लिहाजा इसका मुफ्त आवंटन किया जाना चाहिए।

रेलवे की इस मांग पर दूरसंचार विभाग ने आपत्ति जताई और कहा कि रेलवे का काम 600 से 450-470 मेगाहट्र्ज बैंड के स्पेक्ट्रम से भी चल सकता है। परंतु पर्याप्त 700 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम के बिना 5-जी सेवाएं नहीं चल सकतीं। उसने दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) से इस मसले पर राय मांगी। ट्राई ने रेलवे की मांग को उचित ठहराते हुए कम से कम 10 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम मुफ्त देने का सुझाव दिया। परंतु दूरसंचार विभाग अब भी खुद को रेलवे की मांग पूरी करने की स्थिति में नहीं पा रहा।

विभाग का कहना है उसके पास कुल मिलाकर 700 मेगाहट्र्ज बैंड में 35 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम ही उपलब्ध है। यदि 15 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम रेलवे को दे दिया गया तो सिर्फ 20 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम बचेगा जो भविष्य की 5जी सेवाओं के संचालन के लिए नाकाफी है। इन सेवाओं की शुरुआत अगले वर्ष से प्रस्तावित है, जिसके लिए इसी वर्ष दिसंबर तक स्पेक्ट्रम की नीलामी होनी है।

कई टेलीकॉम कंपनियां 700 बैंड स्पेक्ट्रम की खरीद के लिए तैयार बैठी हैं। यदि नीलामी के लिए केवल 20 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम उपलब्ध हुआ तो इससे उसकी कीमत बहुत अधिक बढ़ जाएगी। टेलीकॉम कंपनियां स्पेक्ट्रम की ऊंची कीमत को लेकर पहले से ही शिकायत कर रही हैं। स्पेक्ट्रम महंगा होने से उसकी बिक्री मुश्किल होगी जिसका असर अंतत: पूरे देश में मोबाइल सेवाओं के आधुनिकीकरण और डाटा की स्पीड पर पड़ेगा। इन तर्को के बाद रेलवे 10 मेगाहट्र्ज तक स्पेक्ट्रम लेने को राजी हो गया है। लेकिन डीओटी इस पर भी राजी नहीं है। दोनो विभागों के अड़ियल रुख को देखते हुए अधिकारी अब इस विवाद के समाधान के लिए पीएमओ से हस्तक्षेप की उम्मीद कर रहे हैं।