अब Tax चोरी करने वालों से सामान खरीदने वाले भी जांच के दायरे में आएंगे

0
75

नई दिल्ली : सरकार ने जीएसटी के डाटा का अध्ययन कर फर्जी रिफंड के दावों के 931 मामले पकड़े हैं। अब सरकार ने जीएसटी की एनालिटिक्सि विंग को देश भर में इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर के सभी पुराने और बकाया रिफंड मामलों की जांच करने का निर्देश दिया है। सूत्रों का मानना है कि ऐसे सभी करदाता जिन्होंने टैक्स चोरी करने वालों से सामान खरीदा है, जांच के दायरे में आएंगे।

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर के खाते में 27,000 करदाताओं ने 28,000 करोड़ रुपये के रिफंड के दावे दाखिल किए हैं। सोमवार को राजस्व सचिव अजय भूषण पांडेय की अध्यक्षता में हुई साप्ताहिक समीक्षा में यह बात सामने आई है।

सूत्रों ने बताया कि इनपुट टैक्स क्रेडिट के फ्रॉड मामलों में डाटा एनालिटिक्स वर्ष 2017 से दिए गए सभी रिफंड का अध्ययन कर रहा है। इसके तहत इस बात की जांच की जा रही है कि करदाताओं ने रिफंड लेने के लिए क्या-क्या तरीके अपनाए हैं। रिफंड लेने के फर्जी मामलों की संख्या में इधर तेज बढ़ोतरी हुई है।

पिछले वर्ष नवंबर तक फर्जी रिफंड के 6,641 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 7,164 करदाता शामिल थे। इनसे 1,057 करोड़ रुपये की वसूली की जा चुकी है।फर्जी रिफंड या फ्रॉड के सबसे ज्यादा मामले कोलकाता जोन में देखे गए हैं। उसके बाद दिल्ली, जयपुर और पंचकुला का नंबर है।

सूत्रों ने बताया कि दिल्ली में जांचकर्ताओं ने डाटा एनालिटिक्स के जरिये फ्रॉड के कई मामलों को उजागर किया है। ऐसे मामलों में देखा गया है कि इसके तहत 500 कंपनियों का एक ऐसा नेटवर्क तैयार किया जा चुका है जिनमें फर्जी बिल बनाने वाले, इंटरमीडियरी डीलर्स, डिस्ट्रीब्यूटर और हवाई चप्पलों के बोगस मैन्यूफैक्चरर तक शामिल हैं। इन लोगों ने फर्जी आइटीसी क्रेडिट का लाभ उठाया।

उत्तराखंड में हवाई चप्पलों की एक ऐसी निर्माता कंपनी मिली जिसने गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु की फर्जी कंपनियों और रिटेलरों को सप्लाई की।जीएसटी के फर्जी रिफंड दावों की जांच करने वाली टीम को इस बात की जानकारी भी मिली है कि उत्तराखंड में ऐसी ही एक जांच के बाद उठाए गये त्वरित कदमों से 27.5 करोड़ रुपये के फर्जी दावों के भुगतान को रोकने में मदद मिली।

इतना ही नहीं स्टार दर्जे वाले निर्यातकों के बारे में भी इस तरह के कई मामले सामने आए हैं। एक मामले में तो 50 करोड़ रुपये से अधिक के रेडीमेड गारमेंट का निर्यात करने वाले एक एक्सपोर्टर ने 3.90 करोड़ रुपये का रिफंड ले लिया, जबकि उसकी कंपनी ने जीएसटी के मद में केवल 1,650 रुपये की राशि का भुगतान किया था।