देश की इकोनॉमी की रफ्तार बढ़ाने में अहम होगा बजट, सरकार द्वारा उठाए कदमों का दिख रहा असर : डी. के. अग्रवाल

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नई दिल्‍ली : केंद्र सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में पूरे साल का अपना पहला पूर्ण बजट पेश करने जा रही है। उद्योगों को इस बजट से बहुत आस है। अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर लाने में बजट को सबसे अहम माना जा रहा है। अर्थव्यवस्था से जुड़े इन सभी पहलुओं पर दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख नितिन प्रधान ने पीएचडी चैंबर ऑफ कामर्स के प्रेसिडेंट डीके अग्रवाल से लंबी बातचीत की। पेश हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश :

देखिए, सब जानते हैं कि स्थिति अच्छी नहीं है। लेकिन सरकार ने बीते दिनों में कुछ ऐसे कदम भी उठाए हैं जिनका असर दिख रहा है। जैसे इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड। इसे आमूल-चूल बदलाव कह सकते हैं। पहले लोग बैंकों से लोन लेते थे और उसका मनचाहा इस्तेमाल करते थे। बैंक से फिर लोन लेकर पहले वाले लोन का भुगतान कर देना एक आदत सी थी। लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता। अब ऐसा नहीं हो पाना छोटी अवधि के लिए दिक्कत पैदा जरूर कर रही है। लेकिन लंबी अवधि के लिए यह अच्छी बात है।

कारोबारियों के लिहाज से दूसरा बड़ा परिवर्तन यह हुआ है कि अब आपको टैक्स देना ही होगा। सरकार अब फेसलैस स्क्रूटनी की शुरुआत कर रही है। जीएसटी आ गया है। सरकार आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल कर रही है। इसलिए अब चाहे डायरेक्ट टैक्स हो या इन्डायरेक्ट, लोगों के लिए कर चोरी करना मुश्किल होगा। ये दो ऐसे बड़े बदलाव हैं जिनका असर आ रहा है। लंबी अवधि में ये दोनों कदम देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर डालेंगे।

देखिए, हमें लगता है कि अगला वर्ष इस मायने में महत्वपूर्ण होगा। यह वर्ष ‘पीरियड ऑफ रिवाइवल’ यानी उबरने की अवधि साबित होगा। शॉर्ट टर्म रिवाइवल के संकेत अगली तिमाही से मिलने शुरू हो जाएंगे। यहां से हम बेहतर की तरफ बढ़ना शुरू कर देंगे। सरकार कदम उठा रही है। लेकिन इनमें फरवरी में पेश होने वाला बजट अहम भूमिका निभाएगा।

एक दिक्कत बैंकों की तरफ से कर्ज की कमी की है। बैंकों में घबराहट है। फैसला गलत हो जाने की चिंता उन्हें उद्योगों को कर्ज देने से रोक रही है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैंक अधिकारियों की इस घबराहट को दूर करने की बहुत अच्छी पहल की है। वित्त मंत्री ने भी शनिवार को बैंक प्रमुखों के साथ बैठक में इस चिंता को दूर करने की कोशिश की है। हमें उम्मीद है कि इससे लोन देने की प्रक्रिया बेहतर होगी। एनबीएफसी की तरफ से भी लिक्विडटी की समस्या बनी हुई है। यही वजह है कि कर्ज की रफ्तार 58 वर्षो के निचले स्तर पर आ गई है।

सबसे पहले तो देश में खपत को बढ़ाने की जरूरत है। खपत बढ़ाने के लिए सरकार को ऐसे उपाय करने होंगे जिससे लोगों की खरीदारी क्षमता बढ़े। अभी सबसे ज्यादा दिक्कत ग्रामीण सेक्टर में है। ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों की खरीदारी और उपभोग क्षमता कैसे बढ़े, यह सबसे अहम है। ऐसा उपाय होना चाहिए कि उनकी खरीदारी क्षमता बढ़ाई जाए।

जी हां हमने काफी सुझाव दिए हैं। जहां तक खपत बढ़ाने के उपायों का सवाल है, हमारा मानना है कि सरकार को पांच लाख रुपये तक की आय सबके लिए टैक्स फ्री कर देनी चाहिए। इसके अलावा हमने इनकम टैक्स स्लैब में भी परिवर्तन का सुझाव भी दिया है।

एमएसएमई हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इसलिए हमारी मांग है कि एमएसएमई क्षेत्र में प्रोप्राइटरशिप, एलएलपी और पार्टनरशिप कंपनियों को प्रोत्साहन देने के लिए टैक्स में पांच परसेंट का अतिरिक्त टैक्स बेनिफिट सरकार दे। साथ ही जिस तरह रियल एस्टेट के लिए सरकार ने एक फंड बनाया है। उसी तरह दबाव झेल रहे एमएसएमई सेक्टर के लिए भी सरकार कम से कम 25 हजार करोड़ रुपये का एक फंड बनाए जिससे उन्हें गिरवी-मुक्त फंड मुहैया कराया जा सके।

सरकार ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस अभियान के तहत देश में कारोबार करना काफी आसान बनाया है। लेकिन यह अभी दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों तक ही सीमित है। प्रदेशों में इसे लेकर काम चल रहा है। लेकिन हमारा मानना है कि राज्यों में जिला स्तर पर प्रशासन के बीच स्पर्धा शुरू की जानी चाहिए कि वहां भी बिजनेस की शुरुआत करने का काम कारोबारियों के लिए आसान हो सके। दूसरी बात यह कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का मकसद केवल सिंगल विंडो क्लीयरेंस मुहैया करा देने से पूरा नहीं होता। उसके तहत मंजूरी लेने के लिए समय-सीमा भी निर्धारित होनी चाहिए। इसलिए हमारा सुझाव है कि सिंगल विंडो से क्लीयरेंस मिलने की समय-सीमा तीन महीने तय हो जानी चाहिए। साथ ही प्रत्येक राज्य सरकार के पास एक लैंड बैंक होना चाहिए ताकि उद्योगो को तुरंत जमीन मिल सके।