कोरोना महामारी ने स्वास्थ्य बीमा के महत्व से हम सभी को अवगत करा दिया है।स्वास्थ्य बीमा होने के बाद बीमारी के इलाज में जिन लागतों का भुगतान आप खुद करते हैं, उसे जेब पर पड़ने वाल खर्च कहा जाता है। स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में दवाएं, पीपीई किट, को-पेमेंट, कमरे के किराए पर कैप आदि उन खर्चो में शामिल है जिसका भुगतान बीमाधारक को अपनी जेब से करना होता है। इसके चलते अब ज्यादा से ज्यादा लोग स्वास्थ्य बीमा खरीद रहे हैं ताकि आसानी से इलाज हो सके, लेकिन हर परिस्थिति में बीमा कंपनी आपके इलाज का खर्च नहीं उठाती है। उस हालात में स्वास्थ्य बीमा के बाद भी आपको जेब से पैसे भड़ने पड़ते हैं। हम आपको बता रहे हैं कि कैसे आप जेब पर पड़ने वाले बोझ को कम कर सकते हैं।
जेब पर पड़ने वाला खर्च क्या है?
मीडिया रिपोर्ट्स बताती है कि इस तरह के खर्च कोविड-19 के इलाज पर खर्च की गई कुल राशि का 30-50% तक पहुंच गया है।
ये खर्चे इतने अधिक क्यों हैं?
मौजूदा समय में कोविड के इलाज में पीपीई किट अनिवार्य है। पीपीई किट में आम तौर पर एक जोड़ी दस्ताने, एक बार इस्तेमाल होने वाला कवरऑल, चश्मा, एक एन-95 मास्क, शू कवर और एक फेस शील्ड शामिल होता है। चूंकि इन वस्तुओं में से प्रत्येक को अलग से माना जाता है, इसलिए कोविड-19 के इलाज में इन सामग्रियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसके साथ ही स्वास्थ्य बीमा में हर चीज को कवर नहीं किया जाता है। इसलिए बीमा होने के बाद भी जेब पर खर्चे बढ़े हैं।
किस तरह जेब पर बोझ को कम कर सकते हैं?
बीमा विशेषज्ञों का कहना है कि बीमा के बाद जेब पर पड़ने वाले बोझ को कम करने के लिए एक कम्प्रीहेंसिव हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदें। इसके साथ ही हर साल बीमा कवरेज की समीक्षा करें और चिकित्सा लागत बढ़ने के अनुसार अपनी कवर की राशि को बढ़ाएं। जेब पर बोझ कम करने के लिए कोशिश करें की आप अपना इलाज बीमा कंपनी के नेटवर्क अस्पताल में भी कराएं। इलाज के दौरान, जांच, दवा, के दूसरे विकल्पों के बारे में पूछें। इसके साथ ही अस्पताल के बिलों की सावधानीपूर्वक जांच करें। कुछ अस्पताल अधिक शुल्क ले सकते है और बीमा कंपनी दावा को रद्द या कटौती कर सकती है।