कृषि कानूनों की वापसी पर बुधवार को लगेगी कैबिनेट की मुहर

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नई दिल्ली। कृषि सुधारों के लिए संसद से पारित तीनों कृषि कानूनों को लेकर सालभर से चलाए जा रहे आंदोलन के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को उनकी वापसी की घोषणा कर दी थी। कानून वापसी की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए तैयार मसौदे पर आगामी बुधवार को होने वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मुहर लग सकती है। इस बीच कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई करने वाले किसान संगठनों के समूह संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukt Kisan Morcha, SKM) ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम खुला पत्र लिखा और वार्ता बहाल करने के साथ छह मांगें रखीं।

किसानों ने आंदोलन जारी रखने का लिया फैसला

केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में कृषि मंत्रालय की ओर से इस बारे में प्रस्ताव प्रस्ताव रखा जाएगा, जिस पर मंजूरी मिलने की संभावना है। प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार कानून वापसी की बाकी प्रक्रिया 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में पूरी हो जाएगी। सरकार की इस तैयारी के बावजूद आंदोलनकारी संगठनों ने कानूनों की संसद में वापसी तक आंदोलन जारी रखने का फैसला किया है।

कानून वापसी के दो तरीके

कानून वापसी के दो प्रमुख तरीके हैं। इसमें अध्यादेश के जरिये किसी कानून को वापस लिया जा सकता है, हालांकि इसके लिए भी छह महीने के भीतर उसे संसद से पारित कराना जरूरी होता है। इसके अलावा दूसरा तरीका यह है कि कानून वापसी के प्रस्ताव को संसद से पास कराया जाए। कृषि मंत्रालय के प्रस्ताव पर कैबिनेट की मुहर से पहले कानून मंत्रालय से मसौदे की स्क्रूटनी भी कराई जाएगी।

कृषि मंत्रालय पेश करेगा प्रस्‍ताव

बुधवार को कैबिनेट की मंजूरी के बाद तीनों कानूनों की वापसी के प्रस्ताव को कृषि मंत्रालय सीधे संसद में पेश करेगा। संसद के दोनों सदनों में प्रस्तावित विधेयक के मसौदे पर मत विभाजन कराया जाएगा। इसमें एक ही प्रस्तावित विधेयक पर तीनों कानूनों को वापस कराया जा सकता है। संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा से कानूनों की वापसी का विधेयक पारित होने के बाद उस पर अंतिम मुहर राष्ट्रपति से लगवाई जाएगी। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही उसे गजट में प्रकाशित किया जाएगा।

शीत सत्र में पेश होगा विधेयक

सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में कृषि कानूनों की वापसी का विधेयक प्रस्तुत करेगी। कानून वापसी में विपक्ष की पहले से ही सहमति है, जिससे यह विधेयक बिना किसी बाधा के पारित हो जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी की स्पष्ट घोषणा के बावजूद कुछ आंदोलनकारी संगठनों को अभी भी कानूनों की वापसी में संदेह लग रहा है। इसी वजह से उन्होंने अपना आंदोलन संसद से कानूनों के रद होने तक जारी रखने का निर्णय किया है।

एसकेएम ने सरकार से वार्ता बहाल करने की मांग उठाई

संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukt Kisan Morcha, SKM) ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखे खुले पत्र में कहा है कि सरकार को तुरंत किसानों से वार्ता बहाल करनी चाहिए। सरकार जब तक ऐसा नहीं करती तब तक आंदोलन जारी रहेगा। किसान संगठन ने आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लिए जाने की भी मांग की है। साथ ही कहा है कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान जिन किसानों की मौत हुई उनके परिवार को मुआवजा दिया जाए। पढ़ें पूरी रिपोर्ट- संयुक्‍त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री मोदी को खुला पत्र लिख रखी छह मांगें

पीएम मोदी ने किया था एलान

सनद रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को गुरु नानक जयंती के अवसर पर राष्ट्र के नाम संबोधन में पिछले करीब एक वर्ष से अधिक समय से विवादों में घिरे तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा की थी। उन्‍होंने राष्ट्र को संबोधित करते हुए छोटे किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार की ओर से उठाए कदमों का उल्‍लेख करते हुए कहा था कि सरकार ने कृषि बजट में पांच गुना बढ़ोतरी की गई है। यही नहीं सरकार हर साल 1.25 लाख करोड़ रुपए से अधिक राशि कृषि क्षेत्र पर खर्च कर रही है। हालांकि सरकार तीन नए कृषि कानून के फायदों को किसानों के एक वर्ग को समझाने में नाकाम रही। उन्होंने कहा था कि सरकार के लिए हर किसान अहम है, इसलिए इन कानूनों को वापस ले रहे हैं।

सरकार के इस कदम के निकाले जा रहे कई मायने

प्रधानमंत्री मोदी ने आंदोलन खत्म करने की अपील करते हुए कहा कि इसी महीने के अंत में शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में औपचारिक रूप से इन तीनों कानूनों को रद कर दिया जाएगा। श्री गुरु नानक देव जी की वाणी का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि जो कुछ किया वह किसानों के लिए था और जो कुछ कर रहे हैं वह भी देश के लिए है। उत्तर प्रदेश और पंजाब सहित पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सरकार के इस फैसले की व्याख्या राजनीतिक दबाव के रूप में भी हो रही है और प्रधानमंत्री के मास्टरस्ट्रोक के रूप में भी…

राजनीतिक दलों से छीन लिया मुद्दा

इन कानूनों को रद करने की मांग को लेकर एक साल से किसानों का धरना-प्रदर्शन चल रहा था। इसमें शक नहीं है कि पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ किसानों का रुख भाजपा के लिए नुकसानदेह हो सकता था और कानून की वापसी के साथ इसे कम करने की कोशिश हुई है। वहीं दूसरा पहलू यह भी है कि प्रधानमंत्री ने एक झटके में किसान आंदोलन की आड़ में रोटी सेंकने वाले राजनीतिक दलों से मुद्दा छीन लिया और उग्र हो रहे किसानों को राहत दे दी। साथ ही पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नए गठबंधन की राह भी तैयार हो गई है।

एक साथ साधे कई निशाने

यानी एक फैसले से सरकार ने कई निशाने साधे हैं। बुधवार को जहां करतारपुर कारिडोर खुला था वहीं शुक्रवार को गुरु पर्व के दिन प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर सबको चौंका दिया। किसान संगठनों से तत्काल इसका स्वागत भी किया। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि कानून बहुत नेक नीयत और पवित्र दिल के साथ छोटे किसानों की भलाई के लिए लाया गया था लेकिन सरकार किसानों को समझा नहीं पाई।

रिकार्ड संख्‍या में बनाए खरीद केंद्र

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि पांच दशक के सार्वजनिक जीवन में उन्होंने किसानों की समस्याओं और चुनौतियों को बहुत करीब से देखा और महसूस किया है। इसीलिए 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से सरकार ने कृषि विकास और किसान कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। 100 में से 80 किसान छोटे हैं। उनके पास दो से भी कम हेक्टेयर जमीन है। इनकी संख्या 10 करोड़ से ज्यादा है। लिहाजा न केवल एमएसपी में वृद्धि की, बल्कि रिकार्ड संख्या में सरकारी खरीद केंद्र भी बनाए और खरीद में कई दशकों के रिकार्ड तोड़ भी दिए।

किसानों से घर लौटने की अपील

इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि गुरु पर्व के वातावरण में किसी को दोष देने का समय नहीं है, किसानों के कल्याण के लिए काम करने के लिए स्वयं को समर्पित करने का दिन है। लिहाजा किसान आंदोलन छोड़ें और अपने घर लौट जाएं। वहीं किसानों का कहना है कि सरकार संसद से जब तक इन कानूनों को वापस नहीं लेती तब तक वह धरना स्‍थलों पर जमे रहेंगे। किसान नेता सरकार के साथ बातचीत की मांग कर रहे हैं।