विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर हथियारों के साथ चीनी सेना की मौजूदगी ने भारत के लिए एक गंभीर सामरिक चुनौती पेश की है। एशिया सोसायटी द्वारा आयोजित एक वर्चुअल सभा में जयशंकर ने कहा कि लद्दाख सेक्टर में जून में जो हिंसक संघर्ष हुआ उसने बहुत गहरा असर डाला है। जनता के स्तर पर भी और राजनीतिक स्तर पर भी और इसके चलते चीन और भारत के रिश्ते बहुत बिगड़ गए हैं।
विदेश मंत्री ने कहा कि एलएसी पर इस समय चीनी सेना बहुत बड़ी संख्या में हथियारों के साथ मौजूद है। साफ तौर पर हमारे लिए यह एक बड़ी चुनौती है। पिछले तीस वर्षों में भारत ने चीन के साथ अच्छे संबंध बनाए हैं और इन रिश्तों का आधार सीमा पर शांति और स्थिरता रही है। साल 1993 के बाद से दोनों देशों के बीच कई समझौते हुए हैं। एशिया सोसायटी पालिसी इंस्टीट्यूट के इस कार्यक्रम में जयशंकर इंस्टीट्यूट के प्रेसिडेंट और पूर्व आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री केविन रड के साथ बातचीत कर रहे थे।
जयशंकर ने कहा कि इन समझौतों की मदद से शांति का ढांचा तैयार हुआ, सीमा वाले इलाकों में सैन्य उपस्थिति कम हुई, सीमा पर सेनाओं का व्यवहार तय हुआ। इन समझौतों के कारण विचार के स्तर से लेकर व्यवहार तक, पूरा खाका तैयार हुआ। अब, इस साल समझौतों के उस पूरे सिलसिले को चीन ने एक तरह से तिलांजलि दे दी है। चीन ने जिस तरह सीमा पर अपने सैनिकों का जमावड़ा कर दिया है वह पूरी तरह इन समझौतों की भावना के खिलाफ है।
सीमा पर कई ऐसे बिंदु थे जहां सेनाएं एक-दूसरे के एकदम करीब थीं। इन्हीं स्थितियों में 15 जून को गलवन की घटना हुई जब दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई। जयशंकर ने कहा कि स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1975 के बाद यह पहला सैन्य टकराव था। यह पूछे जाने पर सीमा पर चीन वास्तव में ऐसा क्यों करता है, जयशंकर ने कहा कि मेरे पास इसका कोई तार्किक स्पष्टीकरण नहीं है।