अपने ही हैं भाजपा-कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती, इन नेताओं ने बढ़ा दी मुश्किलें

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भोपाल. मध्यप्रदेश की 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस जीत के दावे कर रही हैं, लेकिन दोनों ही दलों के सामने सबसे बड़ी मुश्किल भितरघात है। भाजपा 26 सीटों पर दल-बदल के सहारे है तो वहीं, कांग्रेस ने भी ज्यादातर सीटों पर दूसरे दल से आए नेताओं को उम्मीदवार घोषित किया है। ऐसे में दोनों दलों के लिए विपक्षियों से ज्यादा अपनों से ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि कांग्रेस और भाजपा डैमेज कंट्रोल के लिए कड़ी मशक्त कर रहे हैं लेकिन उसके बाद भी दोनों दलों के नेताओं की नाराजगी खुलकर सामने आ रही हैं।

अब तक का सबसे बड़ा उपचुनाव
मध्यप्रदेश में 28 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने हैं। प्रदेश के सियासी इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा उपचुनाव है। मार्च में हुआ सियासी फेरबदल के कारण प्रदेश की 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। 10 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के 22 विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया था। इसके बाद कमलनाथ सरकार गिर गई। जुलाई में बड़ा मलहरा से कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी और नेपानगर से कांग्रेस विधायक सुमित्रा देवी ने भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं उसके बाद मांधाता विधायक ने भी कांग्रेस छोड़ भाजपा के साथ हो गए। इसके अलावा, तीन विधायकों का निधन के कारण तीन सीटें खाली हैं। आगर-मालवा से मनोहर लाल ऊंटवाल, जौरा से वनवारी लाल शर्मा और ब्यावरा सीट से गोवर्धन सिंह दांगी के निधन के बाद सीटें खाली हैं।

भाजपा के बड़े चेहरे
28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए भाजपा के पास कई बड़े चेहरे हैं। लेकिन चुनावों में मुख्य रूप से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इन दोनों के अलावा केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। ज्योतिरादित्य सिंधिया, वीडी शर्मा और नरेन्द्र सिंह तोमर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से आते हैं। जिन 28 सीटों पर उपचुनाव होना है उनमें से 16 सीटें इसी अंचल की हैं। वहीं, इसके अलावा कैलाश विजयवर्गीय की प्रतिष्ठा भी दांव पर है क्योंकि मालवा अंचल की पांच सीटों की जिम्मेदारी पार्टी ने इन्हें ही सौंपी है।

कांग्रेस के बड़े चेहरे
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे के रूप में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व सीएम कमल नाथ हैं। कमलनाथ 15 महीने की अपनी सरकार के कामकाज के सहारे जनता के बीच हैं तो दूसरी पंक्ति के नेताओं में जीतू पटवरी, जयवर्धन सिंह, सज्जन सिंह वर्मा सरीके नेता हैं। हालांकि पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह बड़ा चेहरा होने के बाद भी उतना सक्रिय नहीं हैं। सूत्रों का कहना है कि दिग्विजय सिंह पर्दे के पीछे से सियासी समीकरण तय कर रहे हैं।

दोनों दलों में भितरघात का डर
भाजपा इस उपचुनाव में दलबदल के सहारे है। अगर ब्यावरा, जौरा और आगर-मालवा सीटों को छोड़ दे तो बची 25 सीटों में लगभग उम्मीदवार तय हैं। ये वही उम्मीदवार हैं जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं। इन नेताओं की संभावित दावेदारी को देखते हुए पार्टी के कई नेता अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर संशय में हैं और पार्टी के मंचों पर अपनी नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं। सागर जिले की सुरखी विधानसभा सीट से पूर्व विधायक पारूल साहू और ग्वालियर पूर्व से सतीश सिकरवार भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं और कांग्रेस ने इन्हें उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है।

सांची विधानसभा से भाजपा के संभावित उम्मीदवार हेल्थ मिनिस्टर डॉ प्रभुराम चौधरी हैं जबकि गौरीशंकर शेजवार और मुदित शेजवार नाराज बताए जा रहे हैं। क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में प्रभुऱाम चौधरी ने मुदित शेजवार को चुनाव हराया था। हाटपिपलिया विधानसभा सीट से मनोज चौधरी संभावित उम्मीदवार हैं ऐसे में पूर्व मंत्री दीपक जोशी नाराज हैं। डबरा में इमरती देवी की दावेदारी से कई क्षेत्रीय नेता नाराज हैं। मुरैना सीट से ऐंदल सिंह कंसना संभावित उम्मीदवार हैं ऐसे में पूर्व मंत्री रूस्तम सिंह नाराज बताए जा रहे हैं। हालांकि ग्वालियर विधानसभा सीट पर जयभान सिंह पवैया की नाराजगी को भाजपा दूर करने में सफल रही है। जयभान सिंह पवैया अब प्रद्युमन सिंह तोमर के साथ वोट मांगते नजर आ रहे हैं हालांकि इसके बाद भी पवैया सिंधिया के खिलाफ कई बार टिप्पणी कर चुके हैं। वहीं, सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद प्रभात झा भी नाराज हैं हालांकि उनकी नाराजगी अभी सार्वजानिक तौर पर खुल कर सामने नहीं आई है।

वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस में भी नाराजगी का दौर चल रहा है। 28 सीटों में से 24 सीटों पर कांग्रेस में अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। इनमें से ज्यादातर उम्मीदवार दूसरी पार्टी हैं तो कई उम्मीदवारों को पहली बार मौका दिया गया है जिससे सीनियर नेता नाराज हैं। करैरा विधानसभा सीट से कांग्रेस ने प्रागीलाल जाटव को मैदान में उतारा है इससे नाराज होकर पूर्व विधायक शकुंतला खटीक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गई हैं। वहीं, दिमनी विधानसभा सीट में कांग्रेस कार्यकर्ता रवीद्र तोमर को बाहरी बताकर विरोध कर रहे हैं। सुरखी से पारूल साहू को उम्मीदवार बनाए जाने पर क्षेत्रीय नेता नाराज हैं। वहीं, सतीश सिकरवार के उम्मीदवार घोषित होने से ग्वालियर पूर्व के नेता भी नाराज हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस ने बसपा और भाजपा से आए उम्मीदवारों को टिकट दिया है जिसके कारण कई सीनियर नेता भी नाराज हैं।

कमलनाथ संभाल रहे डैमेज कंट्रोल की बागडोर
मालवा अंचल में भी कांग्रेस ने कई युवा नेताओं को टिकट दिया है जिस कारण सीनियर नेता नाराज बताए जा रहे हैं। हालांकि पूर्व सीएम कमलनाथ लगातार डैमज कंट्रोल के लिए रणनीति बना रहे हैं और और पार्टी के कई पूर्व मंत्रियों को विधानसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी है। वहीं, मेहगांव विधानसभा सीट पर राकेश चतुर्वेदी की दावेदारी को लेकर पेंच फंसा हुआ है। दिग्विजय सिंह, अजय सिंह और पूर्व मंत्री डॉ गोविंद सिंह राकेश चतुर्वेदी के नाम पर आपत्ति जता चुके हैं जिस कारण अभी तक इस सीट पर फैसला नहीं हो पाया है।

भाजपा का डैमेज कंट्रोल मिशन
अपनी पार्टी के नाराज नेताओं को मनाने के लिए पार्टी डैमज कंट्रोल में लगी हुई है। इंदौर जिले की सांवेर विधानसभा सीट में पूर्व विधायक राजेश सोनकर की नाराजगी को दूर करने के लिए भाजपा ने उन्हें इंदौर ग्रामीण का जिला अध्यक्ष नियुक्त किया है। वहीं, गोहद विधानसभा सीट से लालसिंह आर्य की नाराजगी को दूर करने के लिए उन्हें जेपी नड्डा की टीम में शामिल किया गया है। लालसिंह आर्य को अनुसूचित जाति मोर्चे का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है। ग्वालियर-चंबल की 16 सीटों में से 9 सीटें एसी-एटी के लिए आरक्षित हैं। ऐसे भाजपा ने लालसिंह आर्य को पद देकर गोहद के साथ-साथ बची हुई 8 सीटों को भी साधने की कोशिश की है।

दोनों को डर
उपचुनाव में दोनों की दलों को भितरघात से डर है इसी कारण दोनों पार्टी के नेताओं का मुख्य फोकस नेताओं की नाराजगी दूर करना है। भाजपा सत्ता में हैं जिस कारण कई नाराज नेताओं को एडजस्ट करने के लिए उसके पास कई विकल्प हैं लेकिन कांग्रेस इस समय विपक्ष में है ऐसे में कांग्रेस के पास संगठन के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। हालांकि इसके बाद भी नाराज नेताओं की चिंता राजनीतिक भविष्य को लेकर है। इसलिए इन उपचुनावों में दोनों ही दलों के सामने सबसे चुनौती विपक्षियों से ज्यादा अपनों से है।