वो ईरानी कमांडर, जिसे सुलेमानी के साथ ही मारने के लिए अमेरिका ने किया था सीक्रेट ऑपरेशन

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2 जनवरी की रात अमेरिका ने इराक में बड़ा सीक्रेट ऑपरेशन किया और ड्रोन अटैक में टॉप ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी को मार दिया. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने पूरी दुनिया के सामने इसका खुलेआम ऐलान किया. ईरान ने बैलिस्टिक मिसाइलें दागकर पलटवार किया और जंग जैसे हालात पैदा हो गए. लेकिन ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्लानिंग के बारे में एक और बड़े खुलासे ने दुनिया में हड़कंप मचा दिया है. दरअसल उसी रात अमेरिका ने एक और टॉप ईरानी कमांडर को मारने के लिए सीक्रेट ऑपरेशन किया था जो फेल रहा. टॉप अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार ट्रंप प्रशासन की प्लानिंग दोनों ईरानी कमांडरों के खात्मे का एक ही साथ दुनिया में ऐलान करने का था. लेकिन दूसरे ऑपरेशन के फेल होने से सिर्फ सुलेमानी का मामला ही सामने आ पाया.

क्या है दूसरे सीक्रेट ऑपरेशन की कहानी

2 जनवरी 2020 की रात जब अमेरिका ने इराक में सुलेमानी के खात्मे के लिए ड्रोन अटैक किया उसी रात यमन में ईरानी कमांडर और फाइनेंसर अब्दुल रजा शहलाई के खात्मे का भी प्लान था. एक ही रात में दो देशों में हो रहे ऑपरेशन पर रक्षा मुख्यालय पेंटागन और फ्लोरिडा से टॉप सैन्य कमांडर एक साथ नजर रख रहे थे. एक ही साथ दोनों की सफलता का ऐलान भी होना था. लेकिन अमेरिकी प्लान के मुताबिक सब कुछ नहीं हुआ. अमेरिकी मीडिया संगठन वॉशिंटगन पोस्ट के अनुसार अमेरिका ने इस मिशन को काफी सीक्रेट रखा था. इसे किस तरह अंजाम देना था और फेल क्यों हुआ इस बारे में ज्यादा खुलासा करने से अमेरिकी प्रशासन बच रहा है.

जब अमेरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन की प्रवक्ता से इस बारे में पूछा गया तो जवाब था- हमनें 2 जनवरी के यमन में एयरस्ट्राइक पर न्यूज रिपोर्ट्स देखी है. ये इलाका लंबे समय से आतंकियों और अमेरिका के अन्य विरोधियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बना हुआ है.’

कौन है कमांडर अब्दुल रजा शहलाई

अब्दुल रजा शहलाई एक फाइनेंसर है और ईरान के एलिट QUDs फोर्स का सीनियर कमांडर भी. यमन में सक्रिय है जहां अमेरिका समर्थित सऊदी अरब हौउती विद्रोहियों के खिलाफ लड़ रहा है. वहीं दूसरी ओर ईरान हौउती विद्रोहियों का समर्थन करता है. इस इलाके में सुलेमानी के बाद शहलाई ईरानी ऑपरेशन के लिए सबसे प्रमुख कमांडर है. अमेरिका इराक-सीरिया-यमन में हर जगह ऑपरेशनल है और ईरान की हाल के वर्षों में बढ़ी सक्रियता से उसे काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. इसी कारण सुलेमानी और शहलाई के खात्मे का अमेरिका ने प्लान बनाया था.

अमेरिका क्यों मानता है शहलाई को अब सबसे बड़ा दुश्मन

इससे पहले दिसंबर में यमन में ईरान के फाइनेंशियल नेटवर्क के खात्मे के लिए अमेरिका ने कमांडर शहलाई के बारे में सूचना देने वाले के लिए डेढ़ करोड़ अमेरिकी डॉलर के इनाम की घोषणा की थी. अमेरिका ने कहा था कि कमांडर शहलाई लंबे समय से यमन में सक्रिय है. 2011 में इटैलियन रेस्टोरेंट में सऊदी राजदूत पर हमले की प्लानिंग समेत अमेरिका और सहयोगी सेनाओं के खिलाफ कई हमलों में उसकी सक्रियता रही है. इसके अलावा 2007 में इराक के करबला शहर में 5 अमेरिकी सैनिकों के अपहरण और हत्या के पीछे भी अमेरिका शहलाई को ही कसूरवार मानता है.

यमन की चुनौती कितनी बड़ी?

पिछले साल प्रेस कॉन्फ्रेंस में ईरान मामलों पर अमेरिकी विशेष प्रतिनिधी ब्रायन हूक ने कहा था- अमेरिका यमन में कमांडर शहलाई की सक्रियता से चिंतित है. खासकर सऊदी नेतृत्व वाली गठबंधन सेनाओं के खिलाफ लड़ रहे हौउती विद्रोहियों को अत्याधुनिक हथियार मुहैया कराने में उसकी सक्रियता के लिए. गौरतलब है कि ईरान हौउती विद्रोहियों को सैन्य मदद देने के साथ ही सैन्य प्रशिक्षण भी दे रहा है जो कि अमेरिका-सऊदी गठबंधन सेनाओं के खिलाफ लड़ रहे हैं.

क्या होगा इन ऑपरेशंस का असर

ये अमेरिकी ऑपरेशन ऐसे वक्त पर किए गए हैं जब संयुक्त राष्ट्र की ओर से यमन मसले के राजनीतिक हल की कोशिशें की जा रही हैं. अब अमेरिकी ऑपरेशन से यमन में लड़ाई और भड़कने का अंदेशा जताया जा रहा है. हालांकि, कमांडर सुलेमानी की इस इलाके पर अच्छी खासी पकड़ थी और सुलेमानी के मारे जाने के बाद ईरान के प्रभाव में कमी आ सकती है. हालांकि, यमन में शहलाई की मौजूदगी के कारण अमेरिका का काम आसान नहीं होगा.

2015 में यमन की सरकार के खिलाफ हौउती विद्रोहियों के बढ़ते हमलों के बीच सऊदी गठबंधन सेनाओं ने ऑपरेशन शुरू किया था. सऊदी अरब के खिलाफ ईरान भी अप्रत्यक्ष रूप से इस जंग का हिस्सा बन गया. सैन्य प्रशिक्षण से लेकर हथियार मुहैया कराने तक के काम में ईरान हौउती विद्रोहियों के पीछे खड़ा हो गया. यहीं से अमेरिका और ईरान के बीच रिश्ते तल्ख हो गए. यमन पर कब्जे की इस जंग के 4 साल बीत चुके हैं. इससे पूरे खाड़ी क्षेत्र को नुकसान हो रहा है. हजारों लोगों की जान जा चुकी है और लाखों लोग तबाही-भूखमरी का सामना कर रहे हैं.

अमेरिका भले ही ईरान की ओर से तस्करी कर हौउती विद्रोहियों तक पहुंच रहे हथियार को पकड़ने के लिए ऑपरेशन कर रहा था लेकिन यमन या ईरान के नेताओं पर सीधे हमले की कार्रवाई से बचता रहा था लेकिन पहले सुलेमानी को मारने और शहलाई के खिलाफ ऑपरेशन के बाद नए संकेत मिल रहे हैं. ट्रंप ने ऐलान भी किया कि अमेरिका और सहयोगी देशों को मिडिल ईस्ट में अपनी सक्रियता बढ़ाने की जरूरत है. अमेरिकी राष्ट्रपति के इस ऐलान के बाद नैटो चीफ ने भी इसका समर्थन किया और कहा कि दुनिया की सुरक्षा को मिडिल ईस्ट की ओर से बढ़ रहे खतरे के मद्देनजर अमेरिकी राष्ट्रपति के इस सुझाव को मानना वक्त की जरूरत है.