अब सांसदों की सैलरी में होगी 30 फीसद की कटौती, लोकसभा में पास हुआ यह अहम बिल

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नई दिल्ली। कोरोना महामारी की चुनौती से निपटने के लिए सांसदों के वेतन-भत्ते में 30 फीसद कटौती से जुड़े विधेयक को लोकसभा ने मंगलवार को आम सहमति से पारित कर दिया। कोविड से निपटने के लिए अपने वेतन में कटौती का सांसदों ने एक सुर में समर्थन किया। हालांकि सांसद निधि को दो साल के लिए स्थगित रखने के फैसले को गलत बताते सरकार की आलोचना की। लगभग सभी दलों के सांसदों ने एमपीलैड को खत्म करने को आमलोगों के साथ गंभीर अन्याय करार दिया। और भाजपा सांसद चुप्पी साधे बैठे रहे। सांसदों ने यह गुहार भी लगाई कि चाहे सरकार उनके वेतन भत्ते में सौ फीसद कटौती कर ले मगर एमपीलैड को तत्काल बहाल किया जाए।

सांसदों के वेतन-भत्ते में कटौती से जुड़े अध्यादेश की जगह लाए गए विधेयक को संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी ने सोमवार को ही पेश किया था। लोकसभा में इस पर चर्चा की शुरूआत करते हुए कांग्रेस सांसद डीन कुरियाकोस ने एमपीलैड को बहाल किए जाने का संकल्प प्रस्ताव भी पेश किया। उन्होंने कहा कि कोविड से लड़ाई के लिए सांसदों के वेतन भत्ते में 30 फीसद कटौती के जरिये सरकार हर महीने 57 हजार रुपये प्रति सांसद के हिसाब से जुटाएगी। सांसदों को यह राशि देने में कोई हिचक नहीं है। लेकिन 2022 तक एमपीलैड को स्थगित करने का फैसला गलत है क्योंकि इसकी वजह से सांसद अपने क्षेत्र में कोरोना की चुनौती से निपटने के लिए वेंटीलेटर से लेकर एंबुलेस तक की व्यवस्था नहीं कर पा रहे।

एमपीलैड को खत्म करने का विरोध

द्रमुक के कलानिधि और एनसीपी की सुप्रिया सुले ने भी वेतन में कटौती का समर्थन किया मगर एमपीलैड को खत्म करने का विरोध किया। इन दोनों ने कहा कि सरकार का यह कदम केवल सांकेतिक है क्योंकि कोरोना के इस काल में जब सरकारी खर्च में कटौती करनी है तब वह 20 हजार करोड रुपये से अधिक की नई सेंट्रल विस्टा बना रही है। एनसीपी सांसद ने प्रधानमंत्री राहत कोष के रहते पीएम-केयर्स फंड बनाने पर भी सवाल उठाया और कहा कि इसमें पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है।

सांसदों के वेतन में कटौती के प्रस्ताव का आप, टीएमसी समेत कई दलों ने किया समर्थन

सरकार के मित्र दलों बीजेडी के पीनाकी मिश्रा, वाइएसआर कांग्रेस के मिथुन रेड्डी, बीएसपी के मलूक नागर ही नहीं टीएमसी के सौगत राय, महुआ मोइत्रा, आम आदमी पार्टी के भगवंत मान और शिवसेना के एस ए वाणे सभी ने सांसदों के वेतन में कटौती के प्रस्ताव का समर्थन किया। वहीं एमपीलैड को खत्म करने को सांसदों को शक्तिहीन किए जाने वाला कदम बताया। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि एमपीलैड का 83 फीसद पैसा गांवों में खर्च होता है जिसमें एससी समुदाय के लिए 15 फीसद और एसीटी के लिए साढे सात फीसद खर्च करना कानूनी अनिवार्यता है। इसीलिए सदन में सरकार से गुहार है कि बेशक सांसदों के सारे वेतन-भत्ते ले लिए जाएं मगर एमपीलैड को तत्काल बहाल किया जाए।

प्रहलाद जोशी ने बहस का जवाब देते हुए कहा कि कोविड-19 ने असाधारण हालात पैदा किए हैं और इसीलिए सरकार को यह असाधारण फैसला लेना पड़ा। सांसदों के वेतन में कटौती का यह कदम सांकेतिक भले हो मगर यह फैसला इसीलिए लिया गया कि हम रोल मॉडल बनें। जोशी ने एमपीलैड को बहाल करने की गुंजाइश खत्म करते हुए कहा कि इसे 2022 तक दो साल के लिए स्थगित किया गया है। कोरोना लॉकडाउन के बाद आर्थिक चुनौती से निपटने के लिए सरकार ने 7 अप्रैल को अध्यादेश जारी कर सांसदों के वेतन में एक साल के लिए 30 फीसदी कटौती को लागू कर दिया था। जोशी के जवाब के बाद सदन ने सर्वसम्मति से जहां इस अध्यादेश से जुड़े विधेयक को पारित कर दिया वहीं एमपीलैड को बहाल करने के संकल्प प्रस्ताव को खारिज कर दिया।