लखनऊ । पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा उप चुनाव की परीक्षा में उतरी बहुजन समाज पार्टी में बेहतर नतीजे न मिलने के बाद छंटनी अभियान जारी है। एक सप्ताह में आधा दर्जन से अधिक बड़े नेताओं को निष्कासित करने से संगठन में बेचैनी है। माना जा रहा है कि अभी लगभग एक दर्जन नेताओं के कामकाज की समीक्षा कराई जा रही है।
बसपा में जारी छंटनी अभियान की सर्वाधिक मार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नेताओं पर पड़ी है। उपचुनाव के दौरान पूर्व विधायक रविंद्र मोल्हू को अनुशासनहीनता के आरोप में बाहर का रास्ता दिखाने के बाद मेरठ की महापौर सुनीता वर्मा और उनके पति योगेश वर्मा को निष्कासित करने से कार्यकर्ता हैरत में है। सुनीता बसपा की दो महापौर में से एक है और योगेश वर्मा दलित आंदोलन में सक्रिय रहने के कारण लंबे समय जेल में रह चुके है। दोनों को निष्कासित करने के बाद उत्तराखंड प्रभारी रहे सुनील चित्तौड़ समेत चार वरिष्ठ नेताओं को निकाल दिया जाना चौंकाने वाला फैसला रहा।
पश्चिमी उप्र के प्रभारी व दो बार विधान परिषद में सदस्य सुनील कुमार चितौड़ के साथ पूर्व मंत्री नारायण सिंह सुमन, पूर्व विधायक कालीचरण सुमन, वीरू सुमन और पूर्व जिलाध्यक्ष भारतेंदु अरुण, मलखान सिंह व्यास और विक्रम सिंह को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। सूत्रों का कहना है कि विरोधी दलों के अलावा भीम आर्मी के संपर्क में रहने वालों को भी चिह्नित किया जा रहा है।
जलालपुर, घोसी व गंगोह सीटों पर मांगी रिपोर्ट
उपचुनाव में अंबेडकरनगर जिले की जलालपुर सीट हाथ से निकलने और समाजवादी पार्टी की जीत से मायावती बेहद आहत हैं। सूत्रों के अनुसार छह नवंबर की समीक्षा बैठक में जलालपुर की हार का मुद्दा गर्माया रहा। बसपा प्रमुख ने जीत की अनुकूल परिस्थिति होने के बाद भी पराजय के कारणों की रिपोर्ट मांगी है। रिपोर्ट के बाद कुछ नेताओं पर कार्रवाई भी संभव है। वहीं सहारनपुर की गंगोह और मऊ जिले की घोसी सीट के नतीजों को लेकर भी मायावती संतुष्ट नहीं है।
विधान परिषद चुनाव से बनाई दूरी
उपचुनाव में हार से सबक सीखने के बाद बसपा ने अगले वर्ष विधान परिषद की स्नातक व शिक्षक क्षेत्र की सीटों पर न लड़ने का फैसला लिया है। सूत्र बताते हैं कि बसपा अब सीधे 2022 के विधानसभा चुनाव में ही जोर आजमाइश को उतरेगी।