नई दिल्ली। अमेरिका में मंगलवार को अगले राष्ट्रपति के लिए मतदान हो रहे हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बिडेन के बीच होने वाले इस कड़े मुकाबले में कौन जीतेगा यह तो नतीजों के आने के बाद पता चलेगा, लेकिन माना जा रहा है कि इससे भारत और अमेरिका के रिश्तों में मजबूती आने की प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हालांकि, यदि पिछले कुछ राष्ट्रपतियों के कार्यकाल का आकलन करें तो जाहिर है ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका भारत के रिश्तों में जो व्यापकता आई है, वह पहले नहीं देखी गई।
अमेरिका भारत को मदद करने वाले एक विश्वसनीय देश के तौर पर ही नहीं स्थापित हुआ है, बल्कि ऊर्जा, विज्ञान एवं स्वास्थ्य जैसे सेक्टरों में दोनों देशों के बीच सहयोग के एक नए युग की शुरुआत भी हुई है। बीते हफ्ते टू-प्लस-टू वार्ता के दौरान विदेश मंत्रालय ने भारत-अमेरिका के बीच चल रहे विभिन्न परियोजनाओं का जो लेखा-जोखा पेश किया है, वह रिश्तों की गहराई को बतलाता है।
विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में भारत अमेरिकी हथियारों के एक प्रमुख खरीदार के तौर पर सामने आया है तो यह भी याद रखिए कि अमेरिका ने भारत के साथ हेल्थ सेक्टर में जितने समझौते किए हैं उतने दूसरे किसी भी देश के साथ नहीं किए हैं। कोविड-19 वैक्सीन की खोज के लिए आज पांच भारतीय कंपनियां अमेरिकी कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं, ताकि बड़े पैमाने पर वैक्सीन का निर्माण और वितरण हो सके।
अमेरिकी कंपनी ने अपनी रेमडेसिविर दवा बनाने के लिए सात भारतीय कंपनियों ने समझौता किया है। हाल ही में दोनो देशों की कंपनियों के बीच टीबी, इन्फ्लूएंजा, चिकुनगुनिया का वैक्सीन बनाने के समझौते हुए हैं। ऊर्जा दूसरा क्षेत्र है, जहां चार वर्ष पहले रिश्ते करीब-करीब नगण्य थे, लेकिन मौजूदा वक्त में अमेरिका भारत को कच्चे तेल एवं गैस देने वाला एक अहम भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता देश बन गया है।
मौजूदा वक्त में अमेरिका भारत के लिए चौथा सबसे बड़ा क्रूड आपूर्तिकर्ता देश बन गया है। हाल ही में अमेरिका ने भारत के लिए अपने यहां पेट्रोलियम उत्पादों का रणनीतिक भंडार की सुविधा प्रदान करने की हामी भरी है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में भारत की गैस एवं तेल खपत का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका से आएगा। इस वजह से द्विपक्षीय कारोबार पिछले वर्ष 2019 में 149 अरब डॉलर हो गया है।
वैसे यह अमेरिका-चीन और अमेरिका के दूसरे देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों को देखते हुए काफी कम है। अंतरिक्ष एवं तकनीकी दो ऐसे सेक्टर हैं, जिसमें द्विपक्षीय रिश्तों की नींव हाल के चार वर्षों में और मजबूत हुए हैं। एच-1बी वीजा पर राष्ट्रपति ट्रंप के बेहद नकारात्मक रवैए के बावजूद विगत चार वर्षों में अमेरिका ने जितने एच-1बी वीजा दूसरे देशों के नागरिकों को दिए हैं उसमें से 70 फीसद के करीब भारतीयों को मिले हैं।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में वर्ष 2017 में भारतीय तकनीकी कंपनियों ने 57 अरब डॉलर का योगदान दिया था, जबकि चालू वर्ष के दौरान ही अमेरिकी तकनीकी कंपनियों ने भारतीय बाजार में 20 अरब डॉलर का निवेश किया है। अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा और भारतीय एजेंसी इसरो के बीच पिछले पांच वर्षों के भीतर कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का ऐलान किया गया है। इसमें सबसे अहम है वर्ष 2022-23 में प्रक्षेपित की जाने वाली माइक्रोवेव रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट।
सिर्फ कूटनीतिक एवं रणनीतिक मामलों पर भी बात करें तो ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ जारी सैन्य तनाव पर भारत के रुख का समर्थन किया है। विदेश मंत्री माइकल पोम्पियो का पिछले मंगलवार (27 अक्टूबर, 2020) का यह ऐलान कि ‘अमेरिका भारत के साथ हर खतरे में खड़ा रहेगा’ बताता है कि रणनीतिक रिश्ते किस मुकाम पर पहुंचे हैं।